हलचल… कलेक्टर को लेकर कोहराम?

thetnimkmedia@raipur

 

अंगूठा की छाप

राज्य सरकार प्रशासनिक कसावट लाने की ओर एक बड़ा फैसला लेने जा रही है। आने वाले 1 दिसम्बर से सभी कार्यालयों में अंगूठों की छाप अनिवार्य किया जा रहा है। विभागाध्यक्ष को भी इसके दायरे में रखा गया है। दरअसल इसका उद्देश्य प्रशासनिक कसावट लाना है। सरकार इसके पहले सरकारी कार्यालय को डिजिटल कर चुकी है। हर विभाग में अब ई-ऑफिस के माध्यम से काम किया जा रहा है। इसके बाद राज्य सरकार यह दूसरा बड़ा कदम उठाने जा रही है। अब अफसरों को निर्धारित समय पर कार्यालय पहुंचना पड़ेगा, क्योंकि बिना अंगूठे की छाप के उपस्थिति स्वीकार्य नहीं की जाएगी।

कलेक्टर कांफ्रेंस और गुड गवर्नेंस

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और उनकी टीम सिस्टम को लगातार पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की ओर कदम उठा रहे हैं। इसी कड़ी में पहली बार रविवार को कलेक्टर कांफ्रेंस का आयोजन किया गया है, सुबह 10 बजे से यह कांफ्रेंस शुरु हो जाएगी। इतना ही नहीं सभी जिले के कलेक्टरों का राजधानी में दो दिनों तक डेरा रहेगा। सभी कलेक्टर मंगलवार को गुड गवर्नेंस पर आयोजित वर्कशॉप में शामिल होंगे। वहीं सोमवार को जिले के एसपी और कलेक्टर एक साथ कांफ्रेंस में बैठेंगे, दूसरी मीटिंग में डीएफओ को भी बैठक में शामिल होना पड़ेगा। 14 तरीख को वर्कशॉप अटेंड करने के बाद ही कलेक्टर यहां से वापस जाएंगे। चर्चा है कि कांफ्रेंस के बाद कुछ जिलों के कलेक्टर बदले भी जा सकते हैं।

कांफ्रेंस के बाद एसपी, डीएसपी समेत अन्य के तबादले

आईपीएस अफसरों को पोष्टिंग का बेसब्री से इंतजार है। इन अफसरों को अब पोष्टिंग की खुशखबरी कांफ्रेंस के बाद ही मिल पायेगी। इसके साथ ही नवम्बर माह से पुलिस कमिश्नर प्रणाली भी लागू होने जा रही है। माना जा रहा है कि इस कांफ्रेंस के बाद कभी भी जिलों के एसपी बदले जा सकते हैं। जिसमें राजधानी रायपुर के आस-पास के जिलों में बदलाव के ज्यादा संकेत हैं। कहा जा रहा है कि एएसपी, डीएसपी, सीएसपी आदि के तबादले की सूची एक साथ जारी हो सकती है।

रिटायर्ड आईएफएस के कारनामों का सच क्या?

बीते माह बिलासपुर से एक आईएफएस अफसर रिटायर हुए। लेकिन रिटायरमेन्ट के बाद वह विवादों से घिरते नजर आ रहे हैं। दरअसल उनके अधीनस्त रहे अधिकारियों और कर्मचारियों ने उन पर भयदोहन का आरोप लगाया है। हालांकि रिटायरमेन्ट के 15 दिन तक मामला शांत रहा, अब अचानक तूल पकडऩे लगा है। कहा जा रहा है कि नए सीएस विकास शील से इस मामले की निष्पक्ष जांच की गुहार लगाई जा रही है, वहीं विभाग की एसीएस ऋचा शर्मा से भी मामले पर कड़ी कार्यवाही की मांग की गई है। मामले का कोई ऑडियो भी सार्वजनिक हुआ है, जिसके निष्पक्षता की जांच की मांग की जा रही है। बहरहाल इस कारनामें का सच क्या है? यह तो जांच के बाद ही स्पष्ट हो सकता है।

कलेक्टर को लेकर कोहराम?

कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत को लेकर चारों ओर इस समय कोहराम मचा हुआ है। कोरबा कलेक्टर वसंत स्थानीय काम के प्रति जवाबदेह हो सकते हैं, लेकिन वह साय सरकार के प्रति तनिक भी जवाबदेह नजर नहीं आ रहे। यदि वह सरकार के प्रति जवाबदेह होते तो एक सीनियर आदिवासी नेता को राजधानी नहीं पहुंचने देते। कलेक्टर को लेकर विवाद इतना बढ़ गया की संघ के पूर्व प्रांत प्रचारक रहे राजेन्द्र जी ने भी कलेक्टर को हटाने की मांग कर डाली। हालांकि इस विवाद का हल कलेक्टर वसंत को कोरबा में ही निकाल लेना था, लेकिन समाधान खोजने के बजाय वह ननकीराम कंवर से दो-दो हाथ करने में उतर गए और सरकार की फजीहत करा बैठे। बहरहाल सही गलत का फैसला तो जांच में स्पष्ट हो जाएगा, लेकिन इन दिनों कोरबा कलेक्टर अजीत वसंत को लेकर संघ, भाजपा और एक्टिविस्ट भी मैदान पर उतर गए हैं।

वास्तव मेें कानून के हाथ लंबे ही होते हैं

हम अक्सर यह सुनते हैं कि कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं, कानून के यह लंबे हाथ छत्तीसगढ़ राज्य में स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। यहां कानून के हाथ इतने लंबे है कि इससे न मुख्यमंत्री का बेटा बच पाया और न ही स्वयं मंत्री रहे कवासी लखमा बच पाये। भूपेश बघेल राज्य के सीएम रहे, वर्तमान में भी वह पंजाब जैसे राज्य के प्रभारी हैं। उनकी अपनी एक अलग पहचान है, धमक है। राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं पर कानून के लंबे हाथों से अपने बेटे को वह नहीं बचा पाये। नतीजन उनके पुत्र की दिवाली जेल में मनने वाली है। निजी तौर पर उनके परिवार के प्रति संवदेना है, लेकिन कानून का फंदा किसी पर भी पड़ सकता है, इसे नहीं भूलना चाहिए। कवासी लखमा जो स्वयं मंत्री रहे सरकार में उनकी अपनी पैठ थी, बस्तर की राजनीति में उन्हें हरा पाना बेहद कठिन है। लेकिन लालच ने उनका नाता अपराध से जोड़ दिया वह भी सलाखों के पीछे पहुंच गए। शायद ही वह यह दिवाली सुकमा में मना सकें। कहने का आशय यह है कि वास्तव में कानून के हाथ लंबे ही होते हंै जिसके सामने उंची से उंची पहुंच छोटी हो जाती है।

संचालनालय स्तर पर गड़बडिय़ां, मंत्री खफा

संस्कृति एवं पर्यटन विभाग की भर्राशाही को लेकर विभागीय मंत्री काफी खफा हैं। हाल ही में विभागीय मंत्री राजेश अग्रवाल ने संस्कृति विभाग के सभी टेंडर निरस्त करने सचिव को कहा है। इसके लिए उन्होंने बकायदा नोटशीट भी भेजी है। दरअसल मंत्री जी के विभाग में जमकर भर्राशही चल रही है, लगातार शिकायतों से वह काफी परेशान हैं। हालांकि कमोवेश यही हाल उनके पर्यटन विभाग का भी है, यहां पर भी बीते दो साल में ग्राउंड पर कोई खास उपलब्धि नजर नहीं आई। जिसके वजह से मंत्री जी काफी खफा बताये जा रहे हैं। दरअसल राज्य में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन संचालनालय स्तर पर काम की काफी शिकायतें आ रही हैं। सभंव है संस्कृति विभाग के बाद विभागीय मंत्री पर्यटन विभाग के टेंडरों पर भी निरस्तीकरण का चाबुक चला दें।

भारतमाला में अब आगे क्या?

राज्य का चर्चित भारतमाला परियोजना घोटाला अब नया मोड़ लेने जा रहा है। दरअसल राज्य सरकार ने मामले की जांच रिपोर्ट केन्द्र सरकार को भेज दी है। अब केन्द्र सरकार तय करेगी कि मामले की जांच ईडी से कराई जाए या फिर सीबीआई से की जाए। वैसे अभी तक की जांच रिपोर्ट में राजस्व अफसरों को घोटाले के लिए जिम्मेदार बताया गया है। हालांकि राज्य की जांच एजेन्सी ईओडब्ल्यू-एसीबी के जांच में एनएचआई के अफसरों की संलिप्तता की भी बात सामने आई है, लेकिन अभी तक एनएचआई ने विभाग के अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुमति नहीं दी है। दरअसल इस मामले को गंभीर मानते हुए नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत लगातार मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग कर रहे हैं। संभव है राज्य सरकार की जांच रिपोर्ट के बाद मामले को सीबीआई को सौंप दिया जाए।

editor.pioneerraipur@gmail.com

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *