हलचल…कांग्रेस भटक गई है?

 

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कांग्रेस भटक गई है?

छत्तीसगढ़ में चर्चित शराब घोटाला एक बार फिर सुर्खियों में है। इस कड़ी में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पुत्र चैतन्य बघेल को ईडी ने गिरफ्तार कर पूछताछ शुरु कर दी है। यह मामला चैतन्य बघेल तक ही सीमित रहेगा फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता। शराब घोटाले की जड़ें कहां-कहां तक हैं, इसकी परतें दिन-प्रतिदिन खुलते जा रही है। राज्य के तत्कालीन आबकारी मंत्री कवासी लखमा समेत कई अफसर इसी मामले में पहले से ही सलाखों के पीछे हैं और कई कतार पर हैं। अब तत्कालीन सीएम के बेटे को इसी मामले में गिरफ्तार कर लिया गया है। दरअसल राज्य में शराब से काफी राजस्व की प्राप्ति होती है, जिसमें कुछ नेताओं, अफसरों और कारोबारियों की हमेशा से गिद्ध दृष्टि रही है। इसी गिद्ध दृष्टि के चलते गिरफ्तारी का सिलसिला शुरु हुआ जो अनवरत जारी है। निजी जीवन में चैतन्य बघेल एक अच्छे इंशान हो सकते हैं। लेकिन संविधान नियमों पर चलता है, यहां भावनाओं का कोई मोल नहीं, चैतन्य यदि निर्दोष हैं, तो उनके लिए कोर्ट का दरवाजा खुला है। कांग्रेस के सड़क पर उतरने से क्या न्यायालय चैतन्य बघेल को रिहा कर देगी? बघेल और राज्य में हुए शराब घोटाले की लड़ाई में समूचे कांग्रेस को झोंक देना कितना उचित है? इसमें चिंतन और मंथन की जरुरत है। राज्य में जनहित के अनेकों मुद्दे हैं। खुद को किसानों का मशीहा बताने वाली कांग्रेस किसानों के खाद की कमी पर ढोंग करते नजर आई, खाद और बिजली के लिए कांग्रेस पार्टी सड़क पर नहीं नहीं उतरी, न ही चक्काजाम किया और राज्य में हुए भ्रष्टाचार को लेकर सड़क पर उतरने जा रही है, इससे भला जनता का क्या फायदा? शायद कांग्रेस इन दिनों भटक गई है। इसीलिए विष्णु सरकार के 18 माह बीत जाने के बाद भी कांग्रेस छत्तीसगढ़ में डिफेन्सिव मोड़ पर खड़ी है।

जय सिंह ‘जोक’ नहीं

राज्य में अफसरशाही का असर अब दिखने लगा है। दरअसल जब अफसर राजनेता से सीधा भिडऩे का जोखिम उठाना शुरु कर दें, तब अफसरशाही की स्थिति शीशे की तरह साफ दिखने लगती है। खैर इसका मूल्यांकन करना सरकार का काम है। हम बात कर रहे हैं कोरबा कलेक्टर अजीत बसंत की। अजीत बसंत ने एक तस्वीर को लेकर पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल से सीधा भिडऩे का जोखिम उठाया है। उन्होंने तस्वीर को लेकर जयसिंह अग्रवाल को नोटिस जारी कर दी। इस तस्वीर में कितनी सच्चाई है यह फिलहाल जांच का विषय है। कलेक्टर अजीत बसंत के नोटिस से जयसिंह अग्रवाल की राजनीति में कितना असर पड़ेगा यह भी चिंतन का विषय है। ननकीराम कंवर का अपमान हुआ कि नहीं यह उनका निजी मामला है। लेकिन कलेक्टर अजीत बसंत का जयसिंह से भिडऩा सबको आश्चर्य करने वाला है। कलेक्टर के तेवर को देख सब हैरान हैं, आखिर उन्हें किसका सपोर्ट है? खैर अजीत बसंत का यह कानूनी अधिकार है कि वह अपने संबंध में हुए किसी घटनाक्रम को लेकर सवाल उठा सकते हैं, न्यायालय भी जा सकते हैं। लेकिन जय सिंह ‘जोक’ नहीं है, यह भी स्मरण रखना चाहिए। यह बात यहां इसलिए कहना आवश्यक है कि कभी निलंबित आईएएस रानू साहू पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की बहुत करीबी हुआ करती थीं। रानू रायगढ़ समेत अन्य जिलों में बेहतर तरीके से कलेक्टरी कर चुकी थीं। लेकिन उनकी नैया कोरबा में डूब गई। दरअसल रानू साहू भी जयसिंह को ‘जोक’ समझ बैठी थी। रानू ने जयसिंह अग्रवाल से सीधा टकराने की कोशिश की। जयसिंह अग्रवाल ने भूपेश बघेल समेत किसी भी नेता की परवाह नहीं की और तत्कालीन कलेक्टर रानू साहू के खिलाफ सड़क पर उतर गए। वह लगातार रानू के खिलाफ मोर्चा खोलते रहे, नजीता सबके सामने हैं। दरअसल राजनीति दांव-पेंच का खेल है। कब, कौन, कहां किस मोड़ पर मिल जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिए उस फोटो और नोटिस के संदर्भ में यह कहना गलत नहीं होगा कि जय सिंह ‘जोक’ नहीं है ।

प्रभारवाद का दंश

राज्य सरकार की ज्यादातर संस्थायें या विभाग इन दिनों प्रभार पर चल रहे हैं। प्रभारवाद के कारण चारों ओर यह सवाल उठने लगा है कि क्या वास्तव में छत्तीसगढ़ में अफसरों की कमी है? दरअसल राज्य सरकार का महत्वपूर्ण विभाग पर्यावरण संरक्षण मंडल भी अब प्रभार पर चल रहा है। यहां पर सदस्य सचिव आईएफएस अरुण प्रसाद ने सरकारी सेवा से इस्तीफा दे दिया है। उनका इस्तीफा भी मंजूर हो गया, मंण्डल ने उन्हें बीते दिन ससम्मान विदाई भी दे दी। लेकिन सरकार ने अभी तक इस महत्वपूर्ण पद किसी अफसर की पदस्थापना नहीं की है। विभाग के चीफ इंजीनियर फिलहाल पर्यावरण संरक्षण मंण्डल को प्रभार पर चला रहे हैं। प्रभारवाद का दंश सरकार के लिए कितना हितकर है, इस पर जिम्मेदारों को मंथन करना चाहिए। दरअसल यहां यह बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि डीजीपी से लेकर अन्य कई अफसर इन दिनों यहां प्रभार पर ही अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं। सरकार ने इसी क्रम में पर्यावरण संरक्षण मंडल में भी प्रभारवाद को जन्म दे दिया है। आईएफएस अरुण प्रसाद के विदाई के बाद यहां भी अभी तक कोई पदस्थापना नहीं की गई है।

घेरने के रास्ते और भी हैं

वित्त मंत्री ओपी चौधरी पर इन दिनों पूर्व मंत्री कुरुद विधायक अजय चंद्राकर की निशाने पर हैं। यह बात अलग है कि विधानसभा सत्र में कांग्रेस के शोर-शराबे के बीच अजय चंन्द्राकर ओपी चौधरी को घेरने में नाकामयाब रहे। लेकिन जब उन्हें मौका मिला तो वह ओपी चौधरी को सदन के भीतर यह एहसास दिलाने से पीछे नहीं हटे कि घेरने के लिए और भी रास्ते हैं। दरअसल सरकार द्वारा पेश किए गए तीन मूल विधेयकों पर अजय चन्द्राकर ने सदन में आपत्ति जताई। चन्द्राकर ने साफ तौर पर कह दिया कि मूल विधेयकों को रात में पेश कर चर्चा कराया जाना उचित नहीं है। चंद्राकर ने आपत्ति करते हुए कहा कि सदस्यों को अध्ययन व विधानसभा सचिवालय के द्वारा परीक्षण का भी अवसर नहीं मिल पा रहा, इसलिए इन्हें अगले सत्र के लिए बढ़ाया जाना चाहिए। चन्द्राकर की टिप्पणी को विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने जायज ठहराया और वित्त मंत्री ओपी चौधरी से जवाब मांगा। जिस पर ओपी चौधरी ने कहा कि तीनों विषय राज्य हित से संबंधित हैं। भविष्य में ध्यान रखा जाएगा और विधानसभा सचिवालय से समन्वय करके ही पेश किए जाएंगे। इस दौरान विधानसभा अध्यक्ष ने ओपी चौधरी को दो टूक कहा कि भविष्य में इस पर ध्यान दें, यह परंपरा न बन जाए। कुल मिलाकर अजय चंन्द्राकर ओपी चौधरी को यह बताने में सफल रहे कि उन्हें घेरने के अनेकों रास्ते हैं।

विधानसभा में नहीं दिखी महंत की लाठी

विधानसभा सत्र के प्रारम्भ होने के कुछ दिन पहले कांग्रेस की एक मीटिंग में नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत पर यह आरोप लगाया गया था कि वह मुख्यमंत्री पर सवाल नहीं उठाते। यह आरोप और कोई नहीं बल्कि पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने लगाए थे, जो मीडिया में चर्चा का विषय बना हुआ था। खैर महंत भी भला कहां चूकने वाले थे। एक दिन बाद महंत का इसी संदर्भ में बयान आया उन्होंने मीडया के समक्ष कहा कि वह इस बार लाठी लेकर विधानसभा जाएंगे। महंत ने कहा जरुर की वह इस सत्र में लाठी लेकर जांएगे, लेकिन उनकी लाठी कहीं दिखी नहीं। न ही सदन के अंदर उनकी लाठी ने किसी को लहू-लुहान किया। अपितु महंत अपने विचारों अनुरुप सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया से रंगी हुई जैकेट पहनकर विधानसभा पहुंच गए। दरअसल डॉ. चरणदास महंत राज्य कांग्रेस के एक ऐसे नेता हैं जो सभी दलों को स्वीकार्य हैं। उनकी सहजता से कांग्रेस ही नहीं भाजपा के बड़े-बड़े दिग्गज नेता भी कायल हैं। शायद इसीलिए उनके राजनीतिक बायोडाटा में कांग्रेस अध्यक्ष, केन्द्रीय राज्यमंत्री, सांसद, विधायक, मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और अब नेता प्रतिपक्ष का भी नाम लिखा जा चुका है। महंत के बायोडाटा में सिर्फ मुख्यमंत्री का ही कोरम बच गया है, जिसे वह भली-भांति जानते हैं कि इस पद को लाठी से नहीं हासिल किया जा सकता, इसीलिए संभवत: सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया के रास्ते महंत निकल पड़े हैं।

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