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49000 करोड़ की परियोजना को हरी झंडी
छत्तीसगढ़ की सुशासन वाली विष्णु सरकार के खाते में एक और बड़ी उपलब्धि जुडऩे जा रही है। दरअसल बोधघाट परियोजना को लेकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की हाल ही में प्रधानमंत्री के साथ सार्थक चर्चा हुई है। तकरीबन 45 वर्षों से लंबित इस जल विद्युत और सिंचाई परियोजना को आखिकार हरी झंडी मिल गई है। निश्चित ही यह सुशासन वाली विष्णु सरकार की बड़ी उपलब्धि है। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री ने 49000 करोड़ की इस परियोजना को हरी झंडी दे दी है। 1980 में बिजली उत्पादन के प्राथमिक लक्ष्य के साथ इस परियोजना की परिकल्पना की गई थी। बाद में सिंचाई को इसमें प्रमुख घटक के रुप में शामिल किया गया। इस परियोजना से तकरीबन 7 लाख हेक्टेयर में सिंचाई की सुविधा मिलेगी, वहीं हाइड्रोपॉवर प्लांट 125 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेगा। इसके साथ ही इस परियोजना के लिए तकरीबन 13783 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता पड़ेगी। छत्तीसगढ़ सरकार इसके तैयारी पर जुट गई है, और जल्द ही केन्द्रीय जल शक्ति मंत्रालय को रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। यदि इस परियोजना को शुरु करने में विष्णु सरकार कामयाब हो जाती है, तो यह विष्णु सरकार की बड़ी उपलब्धि होगी।
दादी कांग्रेस कार्यालय
राज्य के चर्चित शराब घोटाले में एक अहम कड़ी सामने आई है। इस घोटाले में ईडी ने कांग्रेस नेता पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा और उनके पुत्र हरीश लखमा की 6.34 करोड़ रुपये की संपत्ति अटैच की है। कार्रवाई में यह बात सामने आई है कि यह सम्पत्तियां शराब की कमाई से खरीदी गई है। खैर सच क्या है? यह तो लखमा और ईडी के अफसर ही जानेंगे। लेकिन इसके साथ एक तथ्य और सामने आया है जो आश्चर्य करने वाला है। दरअसल मीडिया रिपोर्ट की मानें तो सुकमा में जो कांग्रेस पार्टी का कार्यालय बनाया गया है वह लखमा परिवार के स्वामित्व में है। वास्तव में यदि यह सत्य है तो इससे बड़ी अति का उदाहरण देश और कांग्रेस में नहीं मिल सकता। बहरहाल ईडी की कार्रवाई को लेकर बड़ा भ्रम है। आम जन में यह संदेश जा रहा है कि ईडी ने किसी राजनीतिक पार्टी का कार्यालय पहली बार अटैच किया है। जबकि मीडिया रिपोर्ट में यह कार्यालय लखमा परिवार के निजी स्वामित्व का बताया जा रहा है। अब इसे दादी कांग्रेस कार्यालय कहा जाए या कांग्रेस कार्यालय यह पार्टी के जिम्मेदार नेताओं को तय करना चाहिए।
सरकार की किरकिरी
छत्तीसगढ़ में रेत के कारोबार को लेकर चारों ओर बवाल मचा हुआ है। रेत माफिया इस कदर कहर बनकर टूट पड़े हैं कि इनसे पुलिस, पत्रकार और अब आम जनता भी सुरक्षित नहीं है। ऐसे में सरकार की कार्यप्रणाली में सवाल उठना लाजमी है। मामला यहां तक पहुंच गया कि हाईकोर्ट ने संज्ञान लेते हुए विभागीय सचिव और सीएस से जवाब तलब किया है। रेत माफिया सबसे पहले बलरामपुर जिले में पुलिस पर अटैक किया, यहां एक आरक्षक की टैक्टर से कुचलकर हत्या कर दी गई। वहीं गरियाबंद में पत्रकारों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा, उनके वाहनों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया गया। अब राजनांदगाव के मोहड गांव में ग्रामीणों यानि की आम जनता पर भी रेत मााफियाओं ने गोलियां बरसाई। इसके अलावा भी अनेकों घटनाएं हैं जो सरकार तक नहीं पहुंच पाती। घटनाओं के पीछे कारण जो भी हो लेकिन इन तमाम घटनाओं के लिए सरकार को ही दोषी ठहराया जाता है, इसलिए इस पर चिंतन और मंथन की जरुरत है। दरअसल अवैध रेत खनन को लेकर बड़े स्तर पर अधिकारियों ने पहले भी बैठकें ली हैं, लेकिन माफियाओं के हौसले दिन-प्रतिदिन और बुलंद हो रहे हैं। आखिर इन्हें किसका संरक्षण है? इसको लेकर सवाल उठने लगे हैं। खैर रेत का करोबार इतना व्यापक रुप ले चुका है कि इसे रोक पाना सिर्फ अफसरों के वश की बात नहीं बची। अवैध रेत खनन को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों की भी जवाबदेही तय होनी चाहिए। तभी रेत के अवैध करोबार और सरकार किरकिरी से बच सकती है।
कैसे रूकेगा लीकेज
वैसे तो वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने अपने पहले बजट में लीकेज रोकने की बात पर जोर दिए थे। लेकिन फिलहाल वह जनता से किए वादे को भूल चुके हैं। दरअसल विष्णु सरकार में भी बड़े पैमाने पर सरकारी राजस्व का दुरुपयोग हो रहा है। उपर से सरल और शांत स्वभाव के मुख्यमंत्री की छवि को भी धूमिल किया जा रहा है। दरअसल राज्य में वनरक्षक के लिए 1484 पदों की भर्ती की जानी थी, जो विवादों में घिर चुकी है। आरटीआई में जो दस्तावेज सामने आये हैं वह चौकाने वाले हैं। लेकिन यहां किसी की कोई जवाबदारी नहीं, जनता के रुपयों को मनमानी लुटाया जा रहा है। राज्य में वनरक्षकों की भर्ती प्रक्रिया की जानी थी, जिसमें भर्ती नियम के तहत इलेक्ट्रानिक तकनीकि का उपयोग किया जाना था। लेकिन इसमें तकरीबन 50 हजार उम्मीदवारों की फिजिकल भर्ती प्रक्रिया बिना इलेक्ट्रानिक डिवाइस के कर दिया गया। कुल मिलाकार भर्ती नियमों की धज्जियां उड़ा दी गई। हालांकि वनरक्षक भर्ती में बड़ी गड़बड़ी का आरोप भाजपा के सीनियर आदिवासी नेता ननकी राम कंवर पहले ही लगा चुके हैं। कंवर ने इसकी शिकायत पीएमओ से लेकर हर जगह की है। अब एसीएस ने भी इसे नियम विरुद्ध बताते हुए गंभीर टिप्पणी की है। एसीएस ऋचा शर्मा ने साफ तौर पर कहा है कि शासन द्वारा अनुमोदित भर्ती प्रक्रिया के अनुसार कार्यवाही नहीं की गई है, जो खेदजनक है। एसीएस ने यह भी कहा कि गलत कार्यवाही का प्रशासकीय अनुमोदन मांगना सहीं नहीं है। उन्होंने यह कहते हुए प्रक्रिया आगे बढ़ा दी कि प्रशासकीय अनुमोदन दिया जाना संभव नही है। खैर अब विभागीय मंत्री लोक हित को देखते हुए निर्णय की ओर आगे बढ़ रहे हैं। और संभव है कि जिन उम्मदीवारों की भर्ती मैनुअली कर दी गई थी, अब फिर इलेक्ट्रानिक पद्धति से की जाए। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब भर्ती नियम और प्रकाशित विज्ञापन में साफ तौर पर लिखा गया है कि प्रक्रिया इलेक्ट्रानिक मशीनों के माध्यम से की जाएगी तो फिर इसे मैनुअल तरीके से क्यों कर दिया गया? अब फिर से भर्ती कराने में लोक धन की क्षति नहीं होगी? क्या भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता और सरकार पर सवाल नहीं उठेगें? आखिर इसके लिए कौन जवाबदार है? आखिर कैसे रूकेगा लीकेज?
होर्डिंग घोटाला
रायपुर नगर निगम में होर्डिंग घोटाला सामने आया है। यहां पर एक होर्डिंग एजेन्सी नगर निगम को करोड़ों रुपये का चूना लगा दिया। दरअसल यह हम नहीं कह रहे, बल्कि रायपुर नगर निगम के अफसर खुद पत्र लिखकर चिल्ला-चिल्ला कर अपना दर्द बयां कर रहे हैं। कहते हैं कि रायपुर नगर निगम के इंजीनियरों ने इस भ्रष्टाचार को संगठित रुप से अंजाम दिया है, खैर सच क्या है? यह जांच का विषय है। दरअसल इस एजेंसी के साथ पहले संाठ-गांठ कर करोड़ों रुपये की देनदारी खड़ी की गई। बाद में निगम के अफसर राशि वसूली की जवाबदेही दूसरे विभाग पर थोप रहे हैं। समय रहते निगम के अफसरों ने इस होर्डिंग एजेन्सी से बकाया राशि की वसूली नहीं की और अब छत्तीसगढ़ संवाद को पत्र लिखकर उक्त एजेन्सी की राशि निगम को देने के लिए कहा जा रहा है। इस राशि की मांग नगर निगम के अफसर कौन से नियम के तहत कर रहे हैं? फिलहाल यह वही जानेंगे। लेकिन इस होर्डिंग घोटाले के बाद से शहर की बहुत सी होर्डिंगें लावारिस हालात में खड़ी हुई हैं। जिसकी देखरेख भी निगम नहीं कर पा रहा, वहीं तकरीबन 1 वर्ष से खाली होर्डिंग के कारण निगम को राजस्व की प्राप्ति भी नहीं हो रही। मैन्टेनेस के अभाव में लगातार घटनाएं बढ़ रही है, जिसको लेकर एक पर्यावरण पे्रमी ने हाल ही में सीएस से लेकर तमाम अफसरों को पत्र लिखकर घटनाओं के बारे में अवगत कराते हुए कार्यवाही की मांग की है। यह पहली दफा है जब राज्य ने होर्डिंग घोटाले की भी खबरें सामने आई हैं।
कब होगी शपथ?
पिछले सप्ताह विष्णु कैबिनेट के विस्तार को लेकर एक बार फिर खबरें उड़ी, सोसल मीडिया में 14-15 तरीख को शपथ की चर्चा छिड़ी हुई थी, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी यह 14-15 तारीख झूठी साबित हुई। खैर अब मंत्रिमंडल के सम्भावित चेहरों का धैर्य जवाब देने लगा है। कहते हैं कि सीएम विष्णुदेव साय के दिल्ली से वापस आने के बाद एक नेता ने मुलाकात कर पूछ ही लिया कि आखिर प्राब्लम क्या है? नेता जी ने पूछा कि आखिर शीर्ष नेतृत्व मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर क्या कह रहा है? क्यों मामला लटका हुआ है? नेताजी की मंत्री पद को लेकर जितनी व्याकुलता थी, उनता ही सरल शब्दों में जबाब मिला। कहा जाता है कि उन्हें यह बता दिया गया है कि आपके नाम पर कोई प्राब्लम नहीं है, वहीं दुर्ग संभाग पर भी लगभग सहमति है। लेकिन मामला अन्य को लेकर लटका हुआ है। जिस पर नेता जी ने कहा कि दो लोगों को शपथ दिलवा दिया जाए, बाकी पर जब सहमति होगी तब देखा जाए। फिलहाल इस पर निर्णय लेना मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है, लेकिन अब नेताओं का धैर्य जवाब देने लगा है।