हलचल… खेल-खेल में बदलो दुनिया

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अंतत: सुनील पर हां

बृजमोहन अग्रवाल की परंपरागत सीट रायपुर दक्षिण से आखिरकर सुनील सोनी को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया है। सुनील सोनी की टिकट काटकर लोकसभा में बृजमोहन अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया गया था। अब बृजमोहन की छाया कहे जाने वाले सुनील को रायपुर दक्षिण की कमान सौंप दी गई है। बृजमोहन अग्रवाल की ही तरह सुनील सोनी पार्टी के एक सच्चे सिपाही माने जाते हैं। लोकसभा में टिकट कटने के बाद भी सुनील सच्चे मन से बृजमोहन और भाजपा के लिए काम करते रहे। जिसको देखते हुए भाजपा ने अंतत: सुनील पर हां कर दी। वहीं दूसरी ओर सुनील को टिकट देने के बाद कई भाजपा नेताओं में निराशा भी दिखाई दे रही है। दरअसल में इस सीट पर पार्टी के कोषाध्यक्ष नंदन जैन से लेकर, संजय श्रीवास्तव, केदार गुप्ता, योगेश तिवारी, राजीव अग्रवाल, मृत्युंजय दुबे, मीनल चौबे समेत अन्य नेता टिकट के दावेदार थे।

सबसे पहले नामांकन फार्म खरीदने के मायने क्या?

पिछले 40 साल से रायपुर दक्षिण में भाजपा का कब्जा रहा, यहां से बृजमोहन अग्रवाल लगातार विधायक चुने जाते रहे हैं। लेकिन अब यह पहला चुनाव होगा जिसमें सामने बृजमोहन नहीं होंगे। बृजमोहन नहीं होंगे सम्भवत: इसीलिए प्रमोद दुबे ने सबसे पहले नामांकन फार्म खरीद लिये हैं। एक दौर ऐसा भी था जब प्रमोद दुबे ने बृजमोहन के सामने चुनावी मैदान में उतरने से ही इंनकार कर दिया था। बृजमोहन के सामने चुनावी मैदान में उतरने से इनकार करना प्रमोद दुबे की राजनीति का अब तक का सबसे गलत निर्णय साबित हुआ। इसीलिए उस दौर के तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और बाद में मुख्यमंत्री बने भूपेश बघेल से प्रमोद दुबे पांच साल तक अलग-थलग पड़े रहे। भूपेश के कारण ही प्रमोद दुबे को रायपुर का मेयर नहीं बनाया गया, मेयर की गद्दी भूपेश के करीबी एजाज ढेबर को सौंप दिया गया। अब प्रमोद ने सबसे पहले नामांकन फार्म खरीदा है, इसके मायने क्या हैं? क्या प्रमोद दुबे को कांग्रेस अपना प्रत्याशी बनाने जा रही है? या यह एक राजनीतिक स्टंट मात्र है। खैर यह तो आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जाएगा। कहा तो यह भी जा रहा है कि पूर्व सीएम भूपेश बघेल अपने खास समर्थक सन्नी अग्रवाल को टिकट देने के लिए अड़े हुए हैं। बहरहाल कांग्रेस की ओर से सन्नी या प्रमोद में से कौन चुनावी मैदान में उतरने जा रहा है, फिलहाल इस पर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।

सीएम को आगे आना पड़ा?

छत्तीसगढ़ में कानून व्यवस्था को लेकर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं। पहले बलौदाबाजार कांड, बाद में कवर्धा के लोहारीडीह और अब सूरजपुर कांड ने विपक्ष को बैठ-बिठाये मुद्दा दे दिया है। यह बात अलग है कि बलौदाबाजार और सूरजपुर कांड में कथित तौर पर कांग्रेसी नेताओं के नाम जुड़ गये, जिसके वजह से मामला कुछ ही दिनों में ठंडा पड़ते दिख रहा है। लेकिन लगातार हो रही घटनाओं में कहीं न कहीं विभाग की लापरवाही उजागर होते दिख रही है, सम्भवत: इसीलिए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को कानून व्यवस्था में सुधार लाने खुद आगे आना पड़ा। मुख्यमंत्री साय ने अपने आवास पर आपात बैठक बुलाकर कार्यशैली में सुधार लाने, खुफिया तंत्र मजबूत करने के साफ निर्देश दिए हैं।

बेंकर का वैभव

बलरामपुर के युवा पुलिस अधीक्षक वैभव बैंकर रमनलाल ने सूरजपुर कांड को ठंडा करने में अहम भूमिका निभाई। दोहरे हत्याकांड के प्रमुख आरोपी कुलदीप साहू को धर दबोचने में वैभव ने दिन-रात एक कर दी। शायद यह पहला मामला होगा जब खुद कप्तान ने मोर्चा सम्भालते हुए आरोपी को धर दबोचा। वैभव ने घटना के हर पहलू में खुद ही नजर रखा। वह आरोपी के हर एक लोकेशन को ट्रेस करते रहे। यहीं नहीं अरोपी को दबोचने के लिए भी पुलिस अधीक्षक खुद मैदान में कूद पड़े और अरोपी को पकड़ कर सलाखों के पीछे भेज दिया। एसपी बैंकर के इस जुनून के कारण उनके वैभव की चर्चा चारों ओर हो रही है।

विकास पर गाज क्यों?

कवर्धा के लोहारीडीह हिंसा मामले में सबसे पहले प्रशिक्षु आईपीएस विकास कुमार पर गाज गिरी। बाद में जिले के कलेक्टर और एसपी को भी हटा दिया गया। 2021 बैच के अफसर विकास कवर्धा में एडिशनल एसपी के पद पर तैनात थे। कचरु साहू की संदिग्ध मौत के बाद ग्रामीणों ने उपसरपंच रघुनाथ का घर जला दिया था, मामले में रघुनाथ की मौत हो गई। पुलिस हिरासत में प्रशांत साहू की भी मौत हो गई, प्रशांत की मौत के बाद पुलिस पर गंभीर आरोप लगे। जिसके कारण आनन-फानन में आईपीएस विकास कुमार को निलंबित कर दिया गया। कहा तो यह भी जा रहा है कि विकास को गृहमंत्री की अनुसंशा पर निलंबित किया गया था। जबकि प्रारंभिक जांच में यह पता चला है कि सीधे तौर पर विकास की कोई भूमिका नहीं थी। बहरहाल वास्तविकता का पता तो पूरी जांच रिपोर्ट आने के बाद ही चल सकता है। लेकिन प्राथमिक तथ्य सामने आने के बाद आईपीएस विकास कुमार को बहाल करने की तैयारी है। जिसको लेकर गृह विभाग ने प्रस्ताव मुख्यमंत्री को भेज दिया है। लेकिन हड़बड़ी में लिए गए इस निर्णय की राजनीतिक गलियारों में जमकर चर्चा है, आखिर बेकसूर अफसर विकास कुमार पर गाज क्यों गिराई गई?

खेल-खेल में बदलो दुनिया

राजधानी में इन दिनों खेल उत्सव चल रहा है, हालांकि खेल उत्सव का आयोजन खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा नहीं बल्कि अन्य विभाग द्वारा किया गया है। इसके लिए 7-8 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया है, जो ओवर स्टीमेट हो गया है। हालांकि कैम्पा है तो टेंशन क्या है? कहा तो यह भी जा रहा है कि इसके लिए इंडस्ट्रियों ने भी अच्छी खासी फंडिग की है। हालांकि सूर्य कुमार जैसे चर्चित क्रिकेटर को 45 लाख रुपये मात्र देने की बात सामने आई है। पूरा विभाग पिछले एक माह से अपना मूल काम छोड़कर इस आयोजन में जुटा हुआ है। एक ओर विभाग खेल-खेल में बदलों दुनिया में लगा हुआ है, तो दूसरी ओर कर्मचारी संगठन दिवाली से पहले मोर्चा खोलने की तैयारी में है। संगठन का तर्क है कि इंक्रीमेट देने के लिए 5 करोड़ रुपये विभाग के पास नहीं हैं, और खेल-खेल में बदलो दुनिया के लिए 7 करोड़ से भी अधिक की राशि खर्च की जा रही है। बहरहाल इस आयोजन को लेकर कई तरह की बातें सामने आ रही हैं, जिसकी आने वाले दिनों में परत-दर परत खुलने की संभावना है।

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