हलचल… प्रशासन में दयानंद, राजनीतिक मामलों में भगत

thethinkmedia@raipur

नड्डा का सेल्फ गोल, दोराहे पर संघ?

जब आप कभी आरएसएस यानि की संघ का नाम सुनते होंगे तो आपके जेहन में भाजपा की तस्वीर दिखाई देती होगी, वहीं भाजपा का नाम आते ही संघ का चेहरा भी सामने आता होगा। कुल मिलाकर भाजपा और संघ एक दूसरे के पूरक माने जाते हैं। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। यह मैं नहीं कह रहा स्वयं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने हाल ही में पत्रकारों से चर्चा के दौरान कहा है। नड्डा की माने तो अब पार्टी इतनी बड़ी हो गई है कि उसे संघ की जरुरत नहीं पड़ती है। आखिर नड्डा के इस राजनीतिक बयान के मायने क्या हैं? जेपी नड्डा ने यह क्यूं कहा कि अब पार्टी का विस्तार हो चुका है। पहले संघ की मदद ली जाती थी, अब जरुरत नहीं पड़ती। सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने इस तरह के बयान मीडिया में स्वयं दिए? या लोकसभा चुनाव के बीच इस तरह के बयान उनसे दिलवाये गये? फिलहाल यह भाजपा का आंतरिक मामला है। लेकिन लोकसभा चुनाव के बीच भाजपा को इस तरह के राजनीतिक बयान की जरुरत क्यों पड़ गई? यह मंथन और चिंतन का विषय है। नड्डा की बातों को गौर करें तो यह लोकसभा चुनाव वास्तव में संघ की विचारधारा से परे, व्यक्ति विशेष पर केन्द्रित दिख रहा है। जिससे यह माना जा सकता है कि संघ का अब भाजपा पर नियंत्रण नहीं रहा, और नड्डा की माने तो भाजपा को भी संघ की जरुरत नहीं है। वास्तव में संघ अभी तक व्यक्तिवाद को नापसंद करते आया है। लेकिन इन दिनों देश में चारों ओर सिर्फ मोदी की गारंटी दिखाई दे रही है, भाजपा की गांरटी कहीं नजर नहीं आ रही। यह कहीं न कहीं अति व्यक्तिवादी होने का खुला उदाहरण है। शायद संघ को इस बात की पीड़ा होगी कि 140 करोड़ की आबादी वाले देश को सिर्फ एक व्यक्ति की गारंटी के भरोसे कैसे छोड़ दिया जाए? बहरहाल वास्तविकता क्या है? यह तो नड्डा और वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन भगवत ही जानेंगे। लेकिन नड्डा का यह बयान तब आया जब छठवें और सातवें चरण के लिए मतदान होना शेष रहा, ऐसे में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का यह राजनीतिक बयान सेल्फ गोल से कम नहीं है।

पूर्व पर वर्तमान भारी

कहते हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान सभी नेताओं को अपने-अपने क्षेत्र में कथा भागवत कराने का अघोषित फरमान था। लोकसभा चुनाव के दौरान चिरमिरी में बाबा बागेश्वर धाम का कथा आयोजन कराने में राज्य के एक मंत्री सफल रहे। हांलाकि आयोजक मंडली में उनका कहीं भी नाम नहीं हैं, लेकिन यह कहा जा रहा है कि पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री को चिरमिरी लाने में मंत्री जी का विशेष योगदान रहा। माना ये भी जा रहा है कि कांग्रेस की प्रभाव वाली सीट कोरबा में बागेश्वरधाम का अच्छा खासा प्रभाव पड़ सकता है। जिसका श्रेय मंत्री जी को जाता दिख रहा है। चिरमिरी में आयोजित इस कथा में भाजपा प्रत्याशी सरोज पांडे भी शामिल हुईं थी, जिसको लेकर चुनाव आयोग ने उनसे जबाब भी तलब किया है। वहीं दूसरी ओर मतदान से पहले भाजपा के एक पूर्व मंत्री भी अपने क्षेत्र में कथा-भागवत के जुगत में लगे रहे। पर उन्हें सफलता मतदान सम्पन्न होने के बाद मिली। बहरहाल इस कथा भागवत का भाजपा को कितना फायदा मिलने वाला है, इसका खुलासा तो अब चुनाव परिणाम के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा। लेकिन एक बात तो तय है कि धर्म-कर्म के मामले में पूर्व मंत्री पर वर्तमान मंत्री भारी पड़ते दिख रहे हैं।

रॉय होंगे रिटायर, फिर परिक्रमा में जुटे सुधीर

पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ सुधीर अग्रवाल इन दिनों फिर परिक्रमा में जुट गए हैं। वाइल्ड लाइफ में कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर सके सुधीर की नजर अभी भी प्रमुख कुर्सी पर है। सुधीर इसके लिए कैट से लेकर हर जगह लड़ाई लड़ रहे हैं। दरअसल में सुधीर अपनी सम्भावनाओं को अभी भी तलास रहे हैं। लोकसभा चुनाव परिणाम के इंतजार के बीच सुधीर एक बार फिर परिक्रमा लगाना शुरु कर दिये हैं। पीसीसीएफ अनिल रॉय का इसी माह के आखिरी में रिटायरमेंट है। और जून माह के पहले सप्ताह में लोकसभा चुनाव परिणाम आने हैं। रॉय के रिटायर होते ही पीसीसीएफ स्तर पर एक बार फिर बदलाव होना तय है। कहा यह भी जा रहा है कि पर्दे के पीछे अनिल साहू भी ताकत झोंक रहे हैं। हांलाकि रॉय के रिटायर होने के बाद साहू को फेरडेशन भेजा जा सकता है। वहीं 1992 बैच के अफसर बी. आनन्द बाबू और वी. शेट्टेप्पनावर के नाम की भी चर्चा है।

राज्य में कांग्रेस का अगला बड़ा चेहरा कौन?

छत्तीसगढ़़ में बीते पांच साल कांग्रेस की सत्ता रही, वर्तमान में भी कांगेस के यहां 34 विधायक हैं। 90 विधानसभा सीटों में 34 की संख्या मतलब एक मजबूत विपक्ष कहा जा सकता है। लेकिन हार के सदमे से कांग्रेस अभी उबर नहीं पाई है। लिहाजा बीते चार माह में विपक्ष की भूमिका शून्य नजर आई। अब देखना यह है कि लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद राज्य में कांग्रेस का अगला सबसे बड़ा चेहरा कौन होगा? दरअसल में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने छत्तीसगढ़ में एक साथ कई दांव चल दिए हैं। लोकसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के साथ ही राज्य के बड़े नेताओं की राजनीतिक क्षमता की थाह लेने की कोशिश भी की गई है। शायद इसीलिए राजनांदगांव लोकसभा सीट से पूर्व सीएम भूपेश बघेल को मैदान में उतारा गया है। वहीं कोरबा से डॉ. चरणदास महंत की परीक्षा ली जा रही है। इसके साथ ही कांग्रेस में साहू समाज का बड़ा चेहरा कहे जाने वाले ताम्रध्वज साहू की भी पकड़ का मूल्यांकन कांग्रेस करने जा रही है। शायद इसीलिए ताम्रध्वज को साहू बाहुल्य क्षेत्र महासमुंद सीट से चुनावी मैदान में उतारा गया है। चार जून को इन तीनों नेताओं में से जिस नेता ने अपनी जीत सुनिश्चित कर ली, वही राज्य कांग्रेस का अघोषित रुप से सबसे बड़ा चेहरा माना जाएगा। वहीं यदि कवासी लखमा को बस्तर में सफलता मिल गई तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व लखमा को राज्य का बड़ा आदिवासी फेस घोषित कर आगे कर दे। दरअसल में लखमा विषम परिस्थितियों में भी अपनी सीट बचाने में सफल होते रहे हैं। इसलिए इन नेताओं के लिए यह चुनाव परिणाम भाग्य बदलने वाला हो सकता है।

ईको टूरिज्म का गठन

अक्सर हम देखते और सुनते रहते हैं कि छत्तीसगढ़ में अपार सम्भावनाएं हैं। वह कैसी सम्भावनाएं है? इसको समझने की जरुरत है। राज्य में वास्तव में टूरिज्म की अपार सम्भावनाएं हैं। हरा-भरा राज्य यदि संवर गया तो यहां सैलानियों की कमी नहीं रहेगी। शायद इसी को देखते हुए ईको टूरिज्म के गठन का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। लेकिन इस बात का भी मूल्यांकन होना चाहिए कि किन अफसरों ने छत्तीसगढ़ को संवारने का काम किया। राज्य में एशिया का सबसे बड़ा मानव निर्मित जंगल सफारी किसके कार्यकाल में बनाया गया, टाटामारी केशकाल की घाटी में प्रकृति का अद्भुत नजारा है, इसमें किस अफसर का योगदान है। गिधवा वर्ड सफारी, जतमई नेजर कैम्प, फासिल पार्क, सोनवर्षा, घोंघा जलासय, सतरेंगा, सत्कार सरोवर समेत कई जगहों में प्रकृति का अद्भुत नजारा है। लेकिन इस दिशा में राज्य के कुछ आईएफएस अफसरों ने ही रुचि दिखाई, जिसके बदौलत आज छत्तीसगढ़ वासियों को घूमने और देखने के लिए अनेको स्थान यहां मौजूद हैं। अब ईको टूरिज्म का गठन होने जा रहा है, जिससे इस दिशा में और भी सम्भावनाएं बढ़ेगी, लोकल स्तर पर रोजगार के भी अच्छे अवसर मिलेंगे।

फार्म 17 सी को लेकर राजनेता कितने सजग?

छत्तीसगढ़ की सभी 11 लोकसभा सीटों के लिए मतदान सम्पन्न हो चुके हैं। यहां के राजनेता मतदान और मतगणना प्रक्रिया को लेकर कितने सजग हैं इसको लेकर सवाल उठ रहे हैं? दरअसल में इन दिनों देश में फार्म 17 सी की चर्चा छिड़ी हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने 17 सी से संबंधित डाटा निर्वाचन आयोग की साइट में उपलोड करने के आदेश देने से फिलहाल इनकार कर दिया है। इसके पीछे तर्क यह है कि बीच मतदान में दखल नहीं दिया जा सकता। सुको का तर्क बिलकुल वाजिब है, देश में लगभग लोकसभा के लिए मतदान सम्पन्न होने को है ऐसे में यह सम्भव भी नहीं है। लेकिन यदि चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशी सजग हैं तो वह मतदान के दिन अपने पीठासीन अधिकारी के माध्यम से फार्म 17 सी ले सकते हैं। छत्तीसगढ़ में कितने प्रत्याशियों ने फार्म 17 सी लिया यह तो वही जानेंगे। लेकिन तमिलनाडू के सभी 39 सीटों पर प्रत्याशियों ने इसकी जानकारी मतदान के दरम्यान ले लिया है। वहीं पश्चिम बंगाल के कृष्णा नगर की प्रत्याशी महुआ मोइत्रा ने भी गड़बडिय़ों से बचने के लिए फार्म 17 सी लिया है। दरअसल में यह निर्वाचन आयोग का दायित्व है कि वह प्रत्याशियों को नामांकन से लेकर मतगणना तक की पूरी जानकारी प्रदान करें, इसके लिए व्यापक स्तर पर प्रशिक्षण की भी जरुरत है। फार्म 17 सी प्रत्याशी के द्वारा बूथ कार्यकर्ता के माध्यम से लिया जा सकता है। इसमें बकायदा पीठासीन अधिकारी और बूथ में बैठे प्रतिनिधि के हास्ताक्षर होते हंै। इस फार्म में बूथ से सम्बंधित सभी जानकारियां मौजूद रहती हैं। जिससे ईवीएम पर गड़बड़ी की आशंकाओं से बचा जा सकता है। इसके साथ ही यह चुनाव लडऩे वाले हर एक प्रत्याशी का अधिकार भी है।

प्रशासन में दयानंद, राजनीतिक मामलों में भगत

कहते हैं कि सीएम हाउस में भी अघोषित रुप से कार्यों का बंटवारा हो चुका है। प्रशासन में आईएएस दयानंद पांडे की चल रही है, तो वहीं राजनीतिक मामलों में आईपीएस राहुल भगत को आगे किया जाता है। हालांकि कार्य विभाजन से टकराव की सम्भावना कम होती है। लेकिन जानकारों का यह भी मानना है कि यदि प्रशासन में दयानंद की चल रही है तो उनके बैचमेट अफसरों को बड़ी जिम्मेदारी क्यूं नहीं मिल पा रही है। उदाहरण स्वरुप आईएएस भुवनेश यादव वर्तमान में समाज कल्याण की जिम्मेदारी सम्भाल रहे हैं। भुवनेश और दयानंद एक ही बैच के अफसर हैं। यह बात अलग है कि कभी दयानंद समाज कल्याण विभाग के संचालक हुआ करते थे, उस समय भुवनेश महिला एवं बाल विकास, समाज कल्याण के सचिव थे।

editor.pioneerraipur@gmail.com

 

 

शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *