नई दिल्ली: भारतीय हॉकी टीम के एनालिस्ट रहे प्रसन्ना लारा ने एक वीडियो में टीम इंडिया के फिर की गेंदबाज आर अश्विन से बात करते हुए कुछ हैरतअंगेज़ खुलासे किए हैं। उन्होंने बताया कि पहले के दौर में हॉकी टीम की क्या दुर्दशा थी। बता दें कि प्रसन्ना लारा क्रिकेट एनालिस्ट के रूप में भी पहचाने जाते हैं। उन्होंने कहा कि ये कहानी दिल पसीज देने वाली है, क्योंकि हमारे हॉकी खिलाड़ियों ने कड़ी मशक्कत व कष्ट सहने के बाद पदक हासिल किया है। लारा ने अपना निजी अनुभव शेयर करते हुए बताया कि जब वो इंडियन हॉकी टीम के साथ काम कर रहे थे, तब उन्होंने देखा था कि एक कमरे में चार-चार प्लेयर्स को रहना पड़ता था।
उन्होंने बताया कि उनके रहने का इंतज़ाम किसी साधारण होटल में होता था। प्रसन्ना लारा ने बताया कि इसके उलट जब वो भारत की अंडर-19 क्रिकेट टीम के साथ काम करते थे, तो प्लेयर्स को पाँच सितारा होटल में अलग-अलग रूम मिलते थे। हर रूम के लिए प्रतिदिन 5000 रुपए का खर्च आता था। मैच की फीस अलग से मिलती थी। पाकिस्तान से हार के बाद क्रिकेट टीम को पैसे मिले। आश्विन ने भी इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि जब वो अंडर-17 टीम के लिए खेल रहे थे तो श्रीलंका की राजधानी कोलंबो स्थित ‘ताज समुद्र’ होटल में प्लेयर्स को ठहराया गया था और एक रूम में दो खिलाड़ी होते थे। जबकि हॉकी के साथ ठीक इसके विपरीत स्थिति थी। प्रसन्ना लारा ने कहा कि जब वो भारतीय हॉकी टीम के साथ नए-नए जुड़े थे, तो खिलाड़ी सरदारा सिंह ने उन्हें बताया कि शाम को 6:30 बजे डिनर दिया जाता है। बता दें कि सरदारा सिंह भारतीय हॉकी टीम के कप्तान रहे हैं। लारा ने कहा कि उन्हें इतनी जल्दी भोजन करने की आदत नहीं थी, किन्तु फिर पता चला कि यदि उस समय खाना नहीं खाया, तो कैंटीन बंद कर दिया जाता है। सुबह के 7 बजे ब्रेकफास्ट और दोपहर के 12:30 में भोजन दिया जाता था। जब प्रसन्ना लारा ने अपने ‘डेली अलाउएंस’ के उपयोग की बात कही, तो वो ये जान कर दंग रह गए कि हॉकी के प्लेयर्स के लिए इस प्रकार की किसी चीज का प्रावधान ही नहीं था।
अगले दिन जब लारा ने लॉन्ड्री की खोज की तो उन्हें पता चला कि प्लेयर्स को अपने कपड़े भी खुद ही धोना पड़ते हैं। उन्होंने बताया कि जब वो हॉकी टीम से जुड़े थे, तब टीम कई विदेशी टीमों को मात दे चुकी थी और ओलंपिक के लिए प्रबल दावेदार थी, किन्तु फिर भी उनके लिए इस तरह की व्यवस्था थी। उन्होंने बताया कि 2008 में ओलंपिक क्वालीफायर खेलने के लिए टीम को बेंगलुरु से मुंबई और फिर वहाँ से जोहान्सबर्ग के लिए रवाना होना था। किन्तु, मुंबई हवाई अड्डे पर 6:30 घंटे का वेटिंग टाइम था। क्रिकेटरों को ऐसे में वक़्त बिताने के लिए लाउन्ज दिए जाते हैं, मगर हॉकी के खिलाड़ियों को हवाई अड्डे पर बैठ कर ही समय गुजारना था। जोहान्सबर्ग के लिए 11:30 घंटे का सफर किया था, जिसके बाद ब्राजील के साओ पाउलो जाने के लिए 12 घंटे का वेटिंग टाइम था। इसके बाद उन्हें चिली जाना था, जहाँ की यात्रा में ब्राजील से 4:30 घंटे का वक़्त लगा। इस प्रकार देखा जाए तो, बेंगलुरु से चिली जाने के लिए भारतीय हॉकी टीम को 72 घंटे की यात्रा करनी पड़ी थी। इसके अगले ही दिन मैच था, मगर नाश्ते का कोई प्रबंध नहीं था। 12:30 से मैच था। ऐसे में 11 बजे नाश्ते में बिस्किट दी गई। फिर ग्राउंड पर केला, बिस्किट और पानी ले जाने के लिए कहा गया, क्योंकि वहाँ खाने का कुछ भी इंतज़ाम नहीं था। लारा ने बताया कि मेडल विजेता राष्ट्रीय हॉकी टीम की ये दुर्दशा थी। उन्होंने बताया कि खिलाड़ियों को मैच फीस तक नहीं मिलती थी, खिलाडी बस अपने पैशन के कारण वहाँ गए थे।